शनिवार, 31 अगस्त 2019

विलुप्त होता हुआ ऊखल

ओखली मुसल

मित्रो आजकल पिसने व कूटने के लिये बहुत सारी मशीनरी आ गई है । लेकिन आज से कुछ ही वर्ष पहले हमारे गाँवो मे ओखली मूसल  व खरल ही पिसने व कूटने का मुख्य औजार था।  ओखली धान आदि कूटने के लिए काठ या पत्थर का एक गहरा पात्र होता है।ओखली में धान आदि कूटने के लिए मूसल का प्रयोग होता है।ओखली हर परिवार, हर घर के आँगन में होती थी अब तो कुछ ही घर होंगे जिनके आँगन इससे सजे होंगे ओखली का हमारे जीवन में आदि काल से बहुत ही महत्त्व रहा है।जब चक्की नहीं हुआ करती थी तो धान, बाजरे की घाट, मसाले कुछ भी जैसे पाउडर बनाना या जव ज्वार का छिलका निकलना आदि काम इसी के द्वारा संपन होते थे।ओखली के ऊपर राजस्थानी भाषा मे कुछ कहावतें भी मशहूर है जैसे- ऊखल मे माथौ दियो तो सोम्बेला सूँ काइँ डरणौ यानी ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना
मित्रो मूसल का प्रयोग प्राय: किसी चीज़ को, जो ओखली में डाली जाती है, उसे तोड़ने या पीसने में किया जाता है। ओखली एक मजबूत कटोरे के आकार की होती है, जबकि मूसल गदा के आकार जैसी होती है। ओखली और मूसल दोनों का निर्माण मजबूत लकड़ी या फिर पत्थर से किया जाता है।

जिस चीज़ को तोड़ना या पीसना होता है, उसे ओखली में डाला जाता है। बाद में उसके ऊपर मूसल के एक के बाद एक प्रहार किए जाते हैं। इस प्रकार उस चीज़ को ओखली में रौंदकर बारीक पीस लिया जाता है।मूसल के प्रयोग से चटनी और औषधि आदि बड़ी आसानी से ओखली में पीसे जा सकते हैं।कई ओखलियाँ आकार में काफ़ी बड़ी होती हैं। इनके लिए गृहणियाँ प्राय: बड़े आकार और वजन में भारी मूसल का प्रयोग करती हैं। मैने कई जगह पढ़ा है सुना भी है कि प्राचीन संस्कृतियों में तो ओखली और मूसल को स्वास्थ्य का बहुत बड़ा आधार माना जाता था । हर घर के आंगन मे ऊखल जरूर दिखता था। अब तो गाँवो मे  किसी किसी घरो मे ही देखते है । मेरे घर पर भी दो पुराने ऊखल थे जो घिस जाने के बाद निचे छेद हो गया था उसको भेन्स बाँधने के काम मे लेते हैं।  ओखली की जगह पर अब मिक्सी आ गई है ।

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