गुरुवार, 15 अगस्त 2019

रक्षा बंधन- भाई बहन के रिस्तो की डौर

।। राम राम सा ।।
मित्रो मित्रों हमारे देश में रोजाना कोई ना कोई त्योहार आते रहते है उसमें से आज भी एक त्यौहार है ।और साथ मे आज स्वतंत्रता दिवस भी है ।  रक्षाबंधन हिंदू धर्म में भाई-बहन का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस त्यौहार के दिन बहनें अपने भाईयों के कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं, और अपने प्रिय भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं। तथा भाई अपनी बहन की सुरक्षा का वचन करते हैं। बहनें यह रक्षा सूत्र अपने भाई के दाहिने हाथ में बाँधती हैं। इस रक्षा सूत्र को ही हम राखी कहते है।
मित्रो सभी त्योहारों के साथ राखी पूनम का त्यौहार आज कल कुछ अजीब सा हो गया है। केवल कुछ उपहार  मिले और उसी से अपने भाई के प्यार को तोला जाता है । कई लडकिया थोक में राखिया लिए घूमती नजर आती है तो कई लड़के अपने प्रेम का इजहार करने के लिए राखी भी बंधवा लेते है। लेकिन आजकल के स्वार्थी लोगो के कारण त्यौहार कुछ खास नजर नही आ रहे है ।
मित्रो  पवित्र रिस्तो की गंगा ना जाने क्यो  मैली मैली  सी हो गयी है । अब बहन भाई के रिश्ते में कही कही दरारे नजर आती है। जो गाँवो मे तो कम है शहरो मे ज्यादा हो गया है ।  पता नहीं हम क्यों हर रिश्ता ,हर बंधन स्वार्थ से जुड़ा महसूस करने लगे है?रेशम सा ये बंधन आजकल  चुभने क्यो लगा है । इसका जीता जागता उदाहरण है पहले बहने ससुराल जाने के बाद अपने माता-पिता से या भाईयो से जबरदस्ती कुछ नहीं मांगती थी और आज ससुराल जाने से पहले ही हिस्सा मांग लेती है । और राखी तो दूर की बात है हथकड़िया पहनाने की धमकी भी दे देती है  पर अब समय बदल गया है। परिस्थितियाँ बदल गई हैं , इन्सान अति लौभी होता जा रहा है । आर्थिक स्थिति भी सबकी बहुत ही अच्छी है, सुविधाएँ भी सभी के पास हैं  तो रहन-सहन भी बदला है, तौर-तरीक़े भी बदले हैं, सयुंक्त परिवारों मे कोई रहना नही चाहता है। परिवार एकल हो गये है , दिन-रात भाग रहें हैं, समय की कमी है। तकनीकी विकास ने भी हमें व्यस्त बना दिया है। तो जब सब कुछ बदल रहा है तो त्योहारों को मनाने की  पुरानी परंपराएं भी  बदल गई है ।
पहले  राखी पूनम का विशेष पकवान सेवई  ही होता था। आजकल की तरह बाजार से मिठाई नही आती थी जो भी बनाओ घर पर ही बनाओ। सैवै  रक्षाबंधन के सात आठ दिन पहले से ही  सब मिल कर बनवाते थे पुरे गाँव मे सैवैई  बनाने की तीन चार ही मशीन थी बारी बारी सबके यहाँ बनती थी । सुविधाओं की कमी तो  थी, पर आपसी खुलापन, मेल-मिलाप अधिक था तो सब काम इसी तरह किए जाते। एक का मेहमान सबका होता, बेटियाँ सबकी होती, मायके आती तो सब मिलने आते, सब कुछ  कुछ न कुछ उसे अवश्य देते थे । यह उस समय की आवश्यकता भी थी। आज वो आत्मीयता भरा समय याद तो बहुत आता है, उस आत्मीयता भरे  प्रेम  की कमी भी अनुभव होती है।
मित्रो  पहले फ़ोटो का इतना चलन नहीं था। फ़ोटोग्राफ़रों के यहाँ जाने के लिये तो योजना  बना कर जाना पड़ता था  और एक- दो फ़ोटो खिंचवा कर आ जाते थे और यह भी बहुत महँगा सा लगता था। आज मोबाइल के कैमरों ने फ़ोटो खिंचना इतना सरल बना दिया है कि हम जीवन के खुशहाल लम्हो  को आसानी से सहेज कर रख सकते हैं। फ़ेसबुक पर लिख कर जब साथ में हम फ़ोटो भी पोस्ट करते हैं, व्हाट्सअप पर अपने मित्रों से शेयर करते हैं तो भी बहुत प्रसन्नता होती है। सुविधाएँ तो बहुत कुछ हुई है पर आपसी प्रेम और लगाव नहीं है।

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